भारत का समर्थन कर चीन एक बार फिर चाल चाल रहा है. युक्रेन पर रूस के हमले के बाद G-7 देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबन्ध लगाये. चीन ने इसका विरोध किया जबकि भारत तटस्थ रहा. जिसके चलते अलग-थलग पड़े चीन को भारत के रूप में अपने लिए एक मजबूत कन्धा दिख रहा है.
हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा हम अक्सर पढ़ते और सुनते रहे हैं.1954 में ये नारा तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने तब दिया था जब भारत ने तिब्बत में चीन की सत्ता स्वीकारी थी. चीन और भारत के रिश्ते हमेशा से ही संदेहास्पद रहे. भाई-भाई के नारे के बावजूद 1965 में चीन ने भारत को धोखा दिया. इसके अलावा समय-समय पर सीमा पर अतिक्रमण को लेकर चीन कई तरह की कोशिशें लगातार करता रहता है.
भारत-चीन के सम्बन्ध एक बार फिर चर्चा में हैं. इस बार चर्चा की वजह है भारत के ‘गेहूं निर्यात पर रोक’ का चीन द्वारा समर्थन. चीन के मुखपत्र Global Times ने इसपर बाकायदा ‘G7’s criticism of India can hardly help resolve global food problem’ शीर्षक से खबर छापी.
दरअसल भारत ने बीते 13 मई को गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी. जिसके पीछे वजह रही बढ़ती महंगाई और गेहूं की कम पैदावार. देश में खुदरा महंगाई की दर 8 फीसदी से ऊपर चली गई. दूसरी तरफ आटे के दामों में लगातार बृद्धि हो रही थी. जिसके चलते सरकार ने अपने घरेलू जरूरतों को पूरा करने के मद्देनज़र गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी.
भारत के इस कदम का G-7 देशों ने विरोध किया. G-7 में दुनिया के सात ताकतवर देश कनाडा, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके और अमेरिका आते हैं. भारत के गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध के फैसले की G7 देशों ने आलोचना करते हुए कहा कि इससे वैश्विक खाद्य संकट और गहराएगा. लेकिन अपने स्वभाव के विपरीत चीन ने भारत के इस कदम का समर्थन करते हुए कहा कि भारत जैसे विकासशील देशों को दोष देने से वैश्विक खाद्य संकट का समाधान नहीं होगा। अख़बार ने लिखा कि G7 देशों के कृषि मंत्री भारत से गेहूं निर्यात पर बैन न लगाने का आग्रह कर रहे हैं, तो G7 देश खुद गेहूं का निर्यात बढ़ाकर खाद्य बाजार को स्थिर करने का कदम क्यों नहीं उठाते? हालांकि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है, लेकिन वैश्विक गेहूं निर्यात में उसकी हिस्सेदारी काफी कम है। इसके उलट कई विकसित देश जिनमें अमेरिका, कनाडा, यूरोपियन यूनियन और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं, दुनिया के सबसे बड़े गेहूं निर्यातक देश हैं। भारत के इस फैसले का समर्थन करते हुए चीन ने G7 देशों के रवैये पर ही सवाल खड़ा किया है। भारत के विरोधी देश माने जाने वाले चीन ने गेहूं के मुद्दे पर समर्थन कर चौंका दिया है। आमतौर पर चीन भारत के पक्ष में कम ही खड़ा नजर आता है। चीन के बचाव और समर्थन से उसपर सवाल उठ रहा है कि आखिर उसके रुख में अचानक आए इस बदलाव की वजह क्या है?
जानकारों का मानना है कि गेहूं एक्सपोर्ट पर बैन के मुद्दे पर चीन के भारत का समर्थन के पीछे दो बड़ी वजहें हैं। इसकी एक वजह है चीन में जून में होने वाला BRICS सम्मेलन, जिसे लेकर चीन चाहता है कि इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन आएं। दूसरी वजह है भारत के साथ चीन का तेजी से बढ़ता उसका व्यापार, जिसे चीन किसी भी वजह से कम होने देना नहीं चाहता. BRICS पांच विकासशील देशों- रूस, भारत, चीन, इंडोनेशिया और साउथ अफ्रीका का एक संगठन है जो 2006 में बना था. BRICS की आगामी बैठक 23-24 जून को चीन में होनी है। इस बैठक में इन पांचों देशों के राष्ट्राध्यक्षों को हिस्सा लेना है।
कुछ हफ्तों पहले जब चीनी विदेश मंत्री वांग यी भारत आये थे तो उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ बैठक के दौरान PM मोदी के ब्रिक्स सम्मेलन के लिए चीन आने की इच्छा जाहिर की थी। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद ब्रिक्स सम्मलेन पहला मौका होगा जब, भारत के PM, रूसी राष्ट्रपति, चीन के राष्ट्रपति, ब्राजील और साउथ अफ्रीका के राष्ट्राध्यक्ष मंच साझा करेंगे। हालांकि ये बैठक वर्चुअल होनी है फिर भी चीन चाहता है कि इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन आयें. इसके पीछे मुख्य वजह मानी जा रही है कि BRICS सम्मलेन के तुरंत बाद ही G-7 देशों की बैठक है. चीन, भारत के सहारे इन देशों पर भी दबाव बनाना चाहता है.
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हालांकि माना जा रहा है कि हाल कि परिस्थितियों को देखते हुए PM मोदी का चीन जाना असंभव है. भारत चाहता है कि डोकलाम संकट की तरह ही लद्दाख संकट का भी शांतिपूर्ण हल हो और चीनी सेना अपनी पुरानी जगह पर लौट जाए, पर बीते कुछ समय से चीन लगातार सीमा विवाद को बढ़ावा देता रहा है.
इसके उलट चीन ने पैंगोंग झील के पार एक दूसरे पुल का निर्माण भी शुरू कर दिया है. माना जा रहा कि इसका इस्तेमाल भारी वाहनों की आवाजाही के लिए किया जाएगा. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इससे पहले भी चीन इस इलाके में एक पुल बना चुका है जिसे भारत अपना हिस्सा बताता है.
Continued monitoring of the bridge construction at #PangongTso shows the further development on site, new activity shows a larger bridge being developed parallel to the first. likely in order to support larger/heavier movement over the lake https://t.co/QoI8LimgWu pic.twitter.com/5p4DY4aqmE
— Damien Symon (@detresfa_) May 18, 2022
इस नए पुल का निर्माण पहले पुल के ठीक सामने ही किया जा रहा है. पहला पुल इसी साल अप्रैल में बनकर तैयार हुआ था. एक खबर के मुताबिक हाई-रिज़ॉल्यूशन सैटेलाइट तस्वीर का विश्लेषण करने वाले विशेषज्ञों के अनुसार, पहले पुल का इस्तेमाल क्रेन जैसे उपकरणों की आवाजाही के लिए किया जा रहा है, ये क्रेन दूसरे पुल को तैयार करने में सहायक हैं. इसी साल जनवरी में जब पैगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों को जोड़ने वाले पुल के निर्माण की रिपोर्ट सामने आई थी तो विदेश मंत्रालय ने कहा था कि ये संरचना तो 60 सालों से चीन के अवैध कब्जे वाले क्षेत्र में स्थित है.
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चीन की चालबाजी में कितना फंसेगा भारत ?
इन दोनों खबरों को देखें तो चीन का रवैय्या फिर संदेशास्पद है. एक तरफ जहां एक मुद्दे पर चीन भारत का समर्थन कर रहा है तो वहीं दूसरी तरफ वह खुद को भारत के खिलाफ सामरिक रूप से मजबूत करने में भी लगा हुआ है. सीमा विवाद को लेकर चीन पहले ही जरूरत पड़ने पर युद्ध की धमकी दे चुका है. ऐसे में भारत को चीन की चालों को समझने और उससे बचने की जरूरत है.